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प्राकृतिक चिकित्सा - 30 : उल्टी की सरल चिकित्सा

उल्टी कई कारणों से हो सकती है। यहाँ हम ऐसी उल्टी की बात कर रहे हैं जो भोजन की गड़बड़ी के कारण होती है। जब हमारा आमाशय ऐसी वस्तुओं से भर जाता है, जिनको पचाना कठिन हो जाता है और पाचन प्रणाली रुक जाती है, तो हमारा शरीर उन वस्तुओं को मुँह के रास्ते वापस फेंकने लगता है। कई बार जहरीली वस्तु खा लेने पर भी उल्टियाँ होती हैं। इन दोनों प्रकार की उल्टियों की चिकित्सा एक ही है। वह यह है कि सबसे पहले सभी प्रकार का खाना-पीना बन्द कर दिया जाये और यदि उल्टी आ रही हो, तो कर ली जाये। यदि ऐसा लगता हो कि उल्टी आ रही है परन्तु होती नहीं हो, तो हमें स्वयं दो-तीन गिलास गुनगुना या साधारण जल पीकर वमन या कुंजल कर लेना चाहिए। कुंजल करने से उल्टी में तत्काल आराम मिलता है। कुंजल क्रिया की चर्चा पीछे की जा चुकी है। प्रत्येक बार उल्टी होने या करने के बाद रोगी को एक या दो घूँट सादा पानी पिला देना चाहिए और यदि मौसम अधिक ठंडा न हो, तो सिर या माथे को ठंडे पानी से तर कर देना चाहिए। इसके साथ ही रोगी को पूरी तरह आराम करना चाहिए। ऐसा करने से एक दिन में ही रोगी को पर्याप्त आराम मिल जाता है और उल्टी की शिकायत दूर हो

प्राकृतिक चिकित्सा - 29 : पेट दर्द की सरल चिकित्सा

पेट का दर्द अन्य शारीरिक दर्दों से अलग प्रकार का होता है इसलिए इसकी चर्चा अलग से की जा रही है। पेट दर्द प्रायः अचानक उत्पन्न होता है। जब हम भोजन या कोई भी वस्तु अधिक मात्रा में खा लेते हैं या पचने में भारी चीजें खा जाते हैं, तो हमारे पाचन संस्थान पर बहुत दबाव पड़ता है। इसी दबाव से पेट में दर्द हो जाता है। कभी-कभी पेट ठीक से साफ न होने के कारण भी गैस बनती है, जिससे दर्द हो जाता है। पेट दर्द के इनके अलावा और भी कई कारण हो सकते हैं, लेकिन मुख्य कारण यही हैं। पेट दर्द होने पर सबसे पहले तो कुछ भी खाना बन्द कर देना चाहिए। पीड़ित व्यक्ति को केवल गुनगुना पानी एक या आधा गिलास पीने को दीजिए। ऐसा कम से कम दो बार करके देखिए। इससे पेट साफ होगा और अधिकांश दर्द इसी से चला जाएगा। यदि गर्म पानी पीने से आराम न मिले, तो लगभग आधा कप (50 मिलीलीटर) सादा पानी में आठ बूँद (2 या 3 मिलीलीटर) पोदीन हरा (पोदीना का अर्क) डालकर तत्काल पी जाना चाहिए। इससे अपचन के कारण होने वाले पेट दर्द में तुरन्त आराम मिलता है। आवश्यक होने पर इसे एक बार और लिया जा सकता है। यदि पेट में दर्द गैस बनने के कारण हो रहा ह

प्राकृतिक चिकित्सा - 28 : दर्द की सरल चिकित्सा

दर्द शरीर के किसी भी अंग में कई कारणों से हो सकता है। इसलिए सबसे पहले उसके कारण को पहचानने की कोशिश करनी चाहिए। प्राकृतिक चिकित्सा में सभी प्रकार के दर्दों का इलाज सफलतापूर्वक किसी अन्य शिकायत या कुप्रभाव के बिना किया जा सकता है। भूलकर भी इसके लिए दर्दनाशक गोलियों का सेवन नहीं करना चाहिए। दर्दनाशक गोलियाँ शरीर के लिए बहुत हानिकारक होती हैं। वे दर्द को दूर नहीं करतीं, केवल उसके अनुभव को कम कर देती हैं। दूसरे शब्दों में, वे हमारे शरीर की उन नाड़ियों को कमजोर कर देती हैं, जिनसे हमें दर्द का पता चलता है। वास्तव में दर्दनाशक दवाएँ एक प्रकार का नशा होती हैं, जो आगे चलकर बहुत हानि करती हैं, इसलिए कभी भी इनका सेवन नहीं करना चाहिए। इसके स्थान पर दर्द के मूल कारण को ही दूर करना उचित होगा। साधारण थकान के कारण हाथ-पैरों में जो दर्द हो जाता है, वह उस स्थान पर सरसों के तेल से हल्की-हल्की मालिश करने पर तत्काल दूर हो जाता है। ऐसी मालिश किसी जानकार और हितैषी व्यक्ति से ही करानी चाहिए। यदि स्वयं मालिश कर सकें, तो बेहतर है। थकान में 5 मिनट का शवासन भी तत्काल आराम देता है। यदि दर्द किसी चोट आदि

प्राकृतिक चिकित्सा - 27 : बुखार की सरल चिकित्सा

समाज में डेंगू, चिकनगुनिया, मलेरिया तथा अन्य प्रकार के वायरल बुखार बहुत फैलते रहे हैं। सामान्य लोग इनके होते ही घबरा जाते हैं और घबराहट में गलत पग उठा लेते हैं। मैंने इन बुखारों से पीड़ित कई व्यक्तियों का किसी भी दवा के बिना केवल जल और फलों से सफल उपचार किया है, उसे यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ। यह उपचार सभी प्रकार के बुखारों में समान रूप से हितकारी है। 1. बुखार होते ही सबसे पहले उसे थर्मामीटर लगाकर नाप लेना चाहिए। यदि बुखार 100 तक है, तो चिन्ता की कोई बात नहीं है। ऐसा बुखार स्वास्थ्य के लिए एक प्रकार से लाभदायक होता है, क्योंकि वह शरीर के विकारों को भस्म कर देता है। इसलिए उसे अपने आप उतरने देना चाहिए। 2. यदि बुखार 100 से अधिक और 102 तक है, तो वह पाचन प्रणाली की गड़बड़ी और दवाओं के कुप्रभाव के कारण होता है। इसको नियंत्रित करने के लिए पेड़ू पर ठंडे पानी की पट्टियां दो-दो मिनट बाद बदलते हुए तब तक रखनी चाहिए जब तक कि बुखार नीचे न आ जाये। ऐसा दिन में दो-तीन बार करना पड़ सकता है। 3. यदि बुखार 102 या उससे भी अधिक है, तो वह वायरल प्रकार का होता है। ऐसे बुखार में पेड़ू के साथ-साथ माथे पर

प्राकृतिक चिकित्सा - 26 : खाँसी की सरल चिकित्सा

खाँसी जुकाम का ही दूसरा रूप है। जब कफ या बलगम नाक से निकलता है, तब हम उसे जुकाम कहते हैं और जब वह गले से निकलता है, तब हम उसे खाँसी कहते हैं। खाँसी में अतिरिक्त बुरी बात यह है कि यह बिगड़े हुए कब्ज और फेंफड़ों में विकार एकत्र होने का भी परिचायक है। गले से बार-बार जो खाँसी उठती है, उससे पता चलता है कि आँतों में बहुत-सा मल सड़ रहा है, जो निकलने के लिए व्यग्र है, मगर गुदा के रास्ते नहीं निकल पा रहा है और इसीलिए उसका उफान ऊपर की ओर हो रहा है। खास तौर से सूखी खाँसी का तो यही मुख्य कारण होता है। कई बार खाँसी शरीर में अम्लता (एसिडिटी) के कारण भी आती है। खाँसी चाहे सूखी हो या गीली, वह इस बात का प्रतीक है कि शरीर में विजातीय द्रव्यों अर्थात् विकारों की मात्रा शरीर की सहन सीमा से बाहर होती जा रही है और यदि उनको तत्काल निकाला न गया, तो नये-नये रोग होने की पूरी सम्भावना है। हमारी अम्मा (दादी) प्रायः एक कहावत सुनाया करती थी- ‘लड़ाई कौ घर हाँसी, रोग कौ घर खाँसी’ अर्थात् ”हँसी-मजाक करना लड़ाई-झगड़े का मूल होता है और खाँसी रोगों का मूल होता है।“ यह कहावत सवा सोलह आने सत्य है। यदि हमें लड़ाई-झगड़े से बच

प्राकृतिक चिकित्सा - 25 : जुकाम की सरल चिकित्सा

सर्दी के मौसम में होने वाले जुकाम का पूरा और पक्का इलाज आप स्वयं सरलता से कर सकते हैं। आप जानते होंगे कि हमारे शरीर में तीन दोष होते हैं- कफ, वात और पित्त। जब तक ये तीनों दोष संतुलन की अवस्था में रहते हैं, तब तक शरीर स्वस्थ रहता है और किसी एक या दो की अधिकता या कमी हो जाने पर शरीर में विकार उत्पन्न हो जाते हैं। आम तौर पर होने वाला जुकाम कफ की अधिकता के कारण होता है। हम जो खाते हैं, उसे अच्छी तरह पचा नहीं पाते, क्योंकि हम पर्याप्त शारीरिक श्रम या व्यायाम नहीं करते। अतः हमारे शरीर में कफ एकत्र हो जाता है। जब तक शरीर उसको संभाले रहता है, तब तक हम स्वस्थ रहते हैं या स्वस्थ मालूम पड़ते हैं, लेकिन कफ एक सीमा से अधिक हो जाने पर शरीर अचानक ठण्ड लगने पर या किसी अन्य बहाने से उसको नाक और गले के रास्ते निकालना शुरू कर देता है। उसी को हम जुकाम कहते हैं। इससे स्पष्ट है कि जुकाम वास्तव में कोई बीमारी नहीं है, बल्कि हमारे शरीर को अनावश्यक कफ से मुक्त करने का प्रकृति का प्रयास है। हम उस कफ को निकालने में प्रकृति की सहायता करके अति शीघ्र जुकाम से मुक्ति पा सकते हैं और पहले से अधिक स्वस्थ हो स

प्राकृतिक चिकित्सा - 24 : धूप स्नान

यह भाप स्नान की वैकल्पिक क्रिया है। जब भाप स्नान के लिए आवश्यक बॉक्स, कवर या भाप उत्पन्न करने के साधन की व्यवस्था न हो सके, तो उसके स्थान पर धूप स्नान लिया जा सकता है। धूप स्नान से भाप स्नान के सभी लाभ प्राप्त हो जाते हैं। धूप स्नान किसी छत या बालकनी में ऐसी जगह लेना चाहिए, जहाँ दोपहर को सीधी धूप आती हो। इसका सबसे अच्छा समय दोपहर 12 बजे से 2 बजे के बीच है। धूप स्नान के लिए केवल अधोवस्त्र पहने रहिए। पहले एक गिलास ठंडा पानी पी लीजिए और सिर पर एक कपड़ा तीन-चार तह करके ठंडे पानी में भिगोकर रख लीजिए। अब धूप आने वाली जगह पर चटाई बिछाकर एक कम्बल ओढ़कर बैठिए। कम्बल को इस प्रकार ओढ़ना चाहिए कि पूरा शरीर अच्छी तरह ढक जाए और सांस लेने के लिए नाक खुली रहे। इस तरह धूप में बैठने पर थोड़ी देर में शरीर गर्म हो जाएगा और पसीना आने लगेगा। खूब पसीना आ जाने पर उठ जाना चाहिए। इसके लिए आपको लगभग आधे घंटे तक धूप में बैठने की आवश्यकता हो सकती है। यदि धूप में बैठने पर चक्कर आने लगें, तो तत्काल उठ जाना चाहिए। इसके बाद तुरन्त बाथरूम में जाकर ठंडे जल से स्नान कर लेना चाहिए। गीले कपड़े से रगड़-रगड़कर नहाना चाहि

प्राकृतिक चिकित्सा - 23 : भाप स्नान

पूरे शरीर पर भाप लगाकर पसीना निकालने को भाप स्नान या वाष्प स्नान (स्पा) कहा जाता है। यह आयुर्वेद की स्वेदन क्रिया का आधुनिक रूप है। इसका उद्देश्य शरीर विशेषकर त्वचा और खून की सफाई करना है। इससे त्वचा के रोम छिद्र खुल जाते हैं और पसीने के रूप में शरीर की बहुत सी गन्दगी बाहर निकल जाती है। अतः इस क्रिया से सभी रोगों में लाभ होता है। मोटापा घटाने का भी यह अच्छा सहायक साधन है। भाप स्नान के लिए प्रायः एक विशेष प्रकार का बाॅक्स बनवाया जाता है, जिसमें एक स्टूल पर मरीज सारे कपड़े उतारकर बैठ जाता है और बाॅक्स का ढक्कन बन्द कर देने पर केवल उसका गले से ऊपर का भाग बाॅक्स के बाहर रहता है, शेष भाग बाॅक्स में रहता है। भाप स्नान लेने से पहले एक गिलास शीतल जल पी लेना चाहिए और सिर पर ठंडे पानी में भिगोयी हुई तौलिया रखनी चाहिए। अब किसी प्रकार से बाॅक्स में भाप भेजी जाती है। जब यह भाप पूरे शरीर पर लगती है, तो शरीर गर्म हो जाता है और बहुत पसीना आता है। भाप स्नान लेते हुए भीतर ही भीतर शरीर की हल्की मालिश भी करते रहना चााहिए। आवश्यक समय तक भाप लगाने के बाद बाहर निकलकर ठंडे पानी से स्नान कर लिया जाता है।

प्राकृतिक चिकित्सा - 22 : वमन या कुंजल

पानी पीकर मुँह से निकाल देने की क्रिया को कुंजल कहा जाता है। (कुछ लोग इसे कुंजर कहते हैं।) यह क्रिया एनीमा की पूरक क्रिया है। एनीमा से बड़ी आँतों और गुदा की सफाई होती है, तो कुंजल क्रिया से आमाशय और छोटी आँतों की सफाई हो जाती है। जब किसी कारणवश अपचन हो गयी हो या उल्टी के कारण बेचैनी अनुभव हो रही हो, तो यह क्रिया कर लेनी चाहिए। इससे तुरन्त आराम मिलता है। सामान्य स्वस्थ व्यक्ति भी यदि सप्ताह में एक बार यह क्रिया कर ले, तो बहुत लाभ होता है। इस क्रिया से आँखों और दाँतों को भी काफी लाभ होता है। यदि कभी फूड पाॅइजनिंग हो जाये या कोई जहरीला पदार्थ खा लिया हो, तो तत्काल यह क्रिया कर लेनी चाहिए। सामान्यतया यह क्रिया प्रातः खाली पेट शौच के बाद ही करनी चाहिए और यदि एनीमा लेना हो, तो वह भी पहले ही ले लेना चाहिए। कुंजल करने के लिए एक छोटे भगौने में एक-डेढ़ लीटर गुनगुना पेय जल लीजिए। उसमें बहुत थोड़ा-सा सैंधा या सादा नमक मिला लीजिए। अब कागासन में अर्थात् दोनों पंजों के बल बैठकर किसी गिलास से उस पानी को गटागट पीते जाइये। तीन, चार, पाँच... जितने गिलास पानी आप पी सकें, पी जाइये। जब पानी और न पिय

प्राकृतिक चिकित्सा - 21 : बुखार का उपचार करती है ठंडे पानी की पट्टी

कई बार शरीर के किसी अंग पर ठंडे पानी की पट्टी रखी जाती है। इसकी विधि यह है कि एक भगौने में खूब ठंडा पानी भर लें। आवश्यक होने पर उसमें बर्फ भी डाली जा सकती है। अब दो छोटे-छोटे तौलिये या रूमाल लें। उनको तह करके इस आकार का बना लें कि उस अंग पर पूरी तरह आ जायें, जिस पर पट्टी रखनी है। अब एक तौलिये को भगौने के पानी में भिगोकर हल्का निचोड़कर उसे उस अंग पर रख दें। ऊपर से उसे किसी ऊनी कपड़े से ढक दें। ठीक दो मिनट तक रखे रहने के बाद दूसरे तौलिये को इसी प्रकार रखें और पहले तौलिये को किसी अन्य बर्तन में अच्छी तरह निचोड़ दें। दो तौलिये इसलिए लिये जाते हैं कि एक पट्टी हटाते ही तत्काल दूसरी पट्टी रखी जा सके। इस प्रकार 15-20 मिनट तक या आवश्यक होने पर अधिक समय तक भी ठंडे पानी की पट्टी रखी जा सकती है। उसके बाद किसी सूखे तौलिये से अच्छी तरह पोंछ देना चाहिए। ठंडे पानी की पट्टी अधिकतर बुखार आने पर पेड़ू और/या माथे पर रखी जाती है। यदि बुखार 102 डिग्री से कम हो, तो केवल पेड़ू पर और यदि 102 या अधिक हो तो माथे पर भी रखनी चाहिए। इससे बुखार तत्काल काबू में आ जाता है। आवश्यक होने पर दिन में तीन-चार बार भी पट्टी

प्राकृतिक चिकित्सा - 20 : सिकाई

कई बार हमें शरीर के किसी अंग की गर्म या गर्म-ठंडी सिकाई करने की आवश्यकता होती है। विशेष रूप से जब वात रोग के कारण जोड़ों में दर्द होता है, जैसे पैरों में या हाथों में, तो गर्म सिकाई उन जोड़ों की जकड़न को दूर करके दर्द कम करती है। नियमित यह करने पर दर्द सही हो जाता है, यद्यपि उसके साथ उन अंगों के कुछ विशेष व्यायाम करना भी आवश्यक होता है। यह क्रिया पूर्ण लाभ होने तक प्रतिदिन कम से कम एक बार करनी चाहिए। यदि सोते समय दोबारा कर ली जाये, तो अधिक लाभ मिलता है। गर्म सिकाई की विधि इस प्रकार है- किसी भगौने में आवश्यकता के अनुसार गर्म पानी भर लीजिए। अब एक रूमाल जैसा तौलिया लेकर उसे एक दो बार मोड़कर आवश्यक आकार की पट्टी बना लीजिए। इस पट्टी को गर्म पानी में भिगो लीजिए और हल्का निचोड़ लीजिए। अब इसको उस अंग पर रख दीजिए और उसे ऊपर से किसी ऊनी कपड़े या मोटे तौलिए से ढक दीजिए। दो-तीन मिनट तक रखे रहने के बाद उसे उठा लीजिए और किसी अन्य बर्तन में पूरा निचोड़ लीजिए। अब फिर उसे गर्म पानी में भिगोकर रखिए। इस प्रकार आवश्यक समय तक सिकाई की जा सकती है। यदि हाथ या पैर की गर्म सिकाई करनी हो, तो पट्टी रखने के ब

प्राकृतिक चिकित्सा - 19 : कटिस्नान

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यह क्रिया आँतों को मजबूत करने और पाचन शक्ति बढ़ाने में बेजोड़ है। इसके लिए चित्र में दिखाये गये अनुसार टीन या प्लास्टिक का एक टब बाजार में बना-बनाया मिलता है या आर्डर देकर बनवाया जा सकता है। कटिस्नान लेने के लिए टब में इतना पानी भरिये कि उसमें दायीं ओर के चित्र के अनुसार बैठने या लेटने पर कमर पूरी डूब जाये और पेड़ू के ऊपर एक इंच पानी आ जाये। पानी सामान्य से कुछ अधिक ठंडा होना चाहिए। आवश्यक होने पर बर्फ डाली जा सकती है। टब में जाँघिया उतारकर बैठना अच्छा है। इसकी सुविधा न होने पर जाँघिया ढीला करके पहने हुए भी बैठ सकते हैं। टब में बैठकर एक छोटे रूमाल जैसे तौलिये से पेड़ू को दायें से बायें और बायें से दायें हल्का-हल्का रगड़ना चाहिए। इतनी जोर से मत रगड़िये कि खाल छिल जाये। निश्चित समय तक कटिस्नान लेकर धीरे से उठ जाइए और पोंछकर कपड़े पहन लीजिए। उठते हुए इस बात का ध्यान रहे कि पानी की बूँदें पैरों पर न टपकें। कटिस्नान प्रारम्भ में दो-तीन मिनट से शुरू करना चाहिए और धीरे-धीरे समय बढ़ाकर अधिक से अधिक 10 मिनट तक लेना चाहिए। इसके लिए सुनहरा नियम यह है कि जैसे ही शरीर में ठंड लगने लगे, तुरन्त

प्राकृतिक चिकित्सा - 18 : एनीमा

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यह आयुर्वेद द्वारा बतायी गयी वस्ति क्रिया का आधुनिक और सरल रूप है। यह प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति की प्रमुखतम क्रियाओं में शामिल है। इसका उद्देश्य है बड़ी आँतों की सफाई करना, क्योंकि बड़ी आँतों में बहुत सा मल एकत्र होकर सड़ता रहता है, जो अपने आप नहीं निकलता। उसको गुदा में पानी चढ़ाकर और उसमें घोलकर निकालना पड़ता है। एनीमा लेने की विधि बहुत सरल है। इसके लिए एनीमा का एक डिब्बा बाजार में दवाइयों या सर्जीकल वस्तुओं की दूकानों पर मिलता है, जिसमें नीचे की ओर एक टोंटी लगी होती है। उस टोंटी में एक रबर की नली लगा देते हैं और उस नली के दूसरे सिरे पर एक प्लास्टिक की पतली और नुकीली टोंटी लगी होती है, जो गुदा में घुसाई जाती है। (चित्र देखिए।) एनीमा के डिब्बे को जमीन से लगभग ढाई-तीन फुट ऊपर दीवार पर किसी कील पर टाँग देना चाहिए। फिर उसमें लगभग एक-सवा लीटर सुहाता हुआ गुनगुना पानी भर लेना चाहिए। उसमें एक या आधा नीबू का रस निचोड़ा जा सकता है, हालांकि यह अनिवार्य नहीं है। अब जमीन पर चित लेटकर घुटनों को ऊपर उठा लीजिए और रबड़ की नली के दूसरे सिरे पर लगी हुई प्लास्टिक की टोंटी को गुदा में एक-दो इंच डालि

प्राकृतिक चिकित्सा - 17 : सभी बीमारियों की माता है कब्ज

प्राकृतिक चिकित्सा का मानना है कि आकस्मिक दुर्घटनाओं को छोड़कर सभी रोगों की माता पेट की खराबी कब्ज है। इसमें मलनिष्कासक अंग कमजोर हो जाने के कारण शरीर से मल पूरी तरह नहीं निकलता और आँतों में चिपककर एकत्र होता रहता है। अधिक दिनों तक पड़े रहने से वह सड़ता रहता है और तरह-तरह की शिकायतें पैदा करता है तथा बड़ी बीमारियों की भूमिका बनाता है। इसलिए प्राकृतिक चिकित्सा में सबसे पहले कब्ज की ही चिकित्सा की जाती है। एक बार कब्ज कट जाने पर रोगी का स्वस्थ होना मामूली बात रह जाती है। कई लोग कहते हैं कि हमें कब्ज नहीं है, क्योंकि हमारा पेट रोज खूब साफ हो जाता है। वे लोग गलती पर हैं, क्योंकि रोज शौच होते रहने पर भी कब्ज हो सकता है। इसे यों समझिये कि घर में हम रोज झाड़ू लगाते हैं और काफी कूड़ा निकालकर फेंकते हैं। फिर भी होली-दिवाली सफाई करने पर घर में बहुत कूड़ा निकलता है। कब्ज भी इसी प्रकार होता है। कब्ज की प्राकृतिक चिकित्सा है- मिट्टी की पट्टी, एनीमा और कटिस्नान। पहले आधा घंटा पेड़ू पर मिट्टी की पट्टी रखें, फिर गुनगुने पानी का एनीमा लें और अन्त में 5 मिनट का कटिस्नान ले लें। इससे कब्ज में काफी आरा

प्राकृतिक चिकित्सा - 16 : मिट्टी की पट्टी

यह प्राकृतिक चिकित्सा की सबसे प्रमुख क्रिया है। मैं लिख चुका हूँ कि प्राकृतिक चिकित्सा का मानना है कि आकस्मिक दुर्घटनाओं को छोड़कर सभी बीमारियों की माता पेट की खराबी कब्ज है। कब्ज पुराना पड़ जाने पर आँतों में मल चिपककर सड़ता रहता है और शरीर में विकार पैदा करता है, जिससे अनेक प्रकार की बीमारियाँ हो जाती हैं। पेड़ू (नाभि से नीचे का पेट का आधा भाग पेड़ू कहा जाता है) पर रखी गयी मिट्टी की पट्टी इसी कब्ज को दूर करने के लिए रामबाण चिकित्सा है। इसलिए प्राकृतिक चिकित्सा में सभी रोगियों का इलाज पेड़ू पर मिट्टी की पट्टी रखकर प्रारम्भ किया जाता है। मिट्टी की पट्टी रखने की विधि बहुत सरल है। इसके लिए जमीन से एक-दो फुट नीचे की साफ मिट्टी ली जाती है। मिट्टी कहीं से भी ले सकते हैं, लेकिन उसमें कूड़ा-करकट और कंकड़ नहीं होने चाहिए। आवश्यक होने पर उसे छान लिया जाता है। अब उसे ठंडे पानी में आटे की तरह सान लिया जाता है। इसी से लगभग 6 इंच चैड़ी, 10 इंच लम्बी और पौन इंच मोटी चैकोर पट्टी किसी कपड़े पर बना लें। यह ध्यान रहे कि मिट्टी के बीच में हवा आदि न हो। इस पट्टी को उल्टा करके पेड़ू पर रखा जाता है और किसी क