प्राकृतिक चिकित्सा -१४ : रोगमुक्ति का रामवाण उपाय : उपवास
यह प्राकृतिक चिकित्सा प्रणाली की सबसे अधिक प्रभावी क्रिया है। जब सभी उपाय असफल हो जाते हैं, तो अन्तिम अस्त्र के रूप में इसे आजमाया जाता है। आयुर्वेद में कहा गया है कि उपवास से सभी प्रकार के विकारों का शमन होता है। जब हमारा पेट खाली होता है, तो भोजन को पचाने वाली अग्नि शरीर के विकारों को खाने लगती है। श्लोक इस प्रकार है-
आहारं पचति शिखि दोषानाहारवर्जितः।
दोषक्षये पचेत्धातून् प्राणान् धातुक्षये तथा॥
अर्थात् ”बढ़ी हुई अग्नि (जठराग्नि) प्रारम्भ में आहार का पाचन करती है और आहार के अभाव में वही अग्नि बढ़े हुए दोषों का पाचन करती है।“ इसीलिए कहा गया है कि ‘लंघनम् परमौषधिम्’ अर्थात् ”उपवास सबसे बड़ी दवा है।“
दोषक्षये पचेत्धातून् प्राणान् धातुक्षये तथा॥
अर्थात् ”बढ़ी हुई अग्नि (जठराग्नि) प्रारम्भ में आहार का पाचन करती है और आहार के अभाव में वही अग्नि बढ़े हुए दोषों का पाचन करती है।“ इसीलिए कहा गया है कि ‘लंघनम् परमौषधिम्’ अर्थात् ”उपवास सबसे बड़ी दवा है।“
उपवास हमारे धर्म का अंग भी है। माह में कम से कम दो बार एकादशी के दिन उपवास या व्रत करने का विधान है।अन्य विशेष अवसरों पर भी किया जा सकता है, परन्तु जिस प्रकार यह किया जाता है, वह स्वास्थ्य के लिए बहुत हानिकारक होता है। लोग पहले तो दिन भर भूखे रहते हैं और खाली पेट चाय पीते रहते हैं। फिर दोपहर बाद या शाम को कूटू, सिंघाड़े आदि से बनी भारी-भारी चीजें और खोये की मिठाइयाँ ठूँस-ठूँसकर खा लेते हैं।
ऐसा करना स्वास्थ्य की दृष्टि से बहुत भयंकर है। ऐसे व्रत से तो व्रत न करना ही बेहतर है। ऐसा व्रत करने वाले प्रायः बीमार ही बने रहते हैं, इसलिए ऐसा कभी नहीं करना चाहिए। इसके स्थान पर युक्तिपूर्वक उपवास करना चाहिए, जिसकी विधि यहाँ बतायी जा रही है।
साधारण उपवास में केवल साधारण शीतल या अधिक जाड़े के दिनों गुनगुने जल के सिवाय कुछ नहीं लिया जाता। मौसम के अनुसार साधारण ठंडा या गुनगुना जल प्रत्येक घंटे पर एक गिलास की मात्रा में पीते रहना चाहिए। उपवास में दिन भर में तीन से चार लीटर तक जल अवश्य पीना चाहिए। प्रारम्भ में उपवास से कमजोरी महसूस होगी। उसे सहन कर जाना चाहिए और लेट जाना चाहिए।
अति आवश्यक होने पर कभी-कभी पानी में नीबू का रस या/और एक चम्मच शुद्ध शहद मिलाया जा सकता है। यदि आपके पास एनीमा लेने की सुविधा हो, तो उपवास के प्रत्येक दिन प्रातःकाल एनीमा लेना अच्छा रहता है तथा पहले दिन आवश्यक होने पर सायंकाल भी एनीमा लिया जा सकता है। एनीमा से उपवास का पूरा लाभ मिलता है। यदि एनीमा की व्यवस्था न हो सके, तो भी कोई हानि नहीं होती।
एक से तीन दिन तक का उपवास कोई भी व्यक्ति सरलता से कर सकता है। इसमें कोई विशेष कष्ट नहीं होता। यदि कोई कष्ट जैसे दस्त, उल्टी, बेचैनी या बुखार हो जाता है, तो उसे प्रकृति की कृपा मानकर सहन करना चाहिए। इनसे पता चलता है कि उपवास का पूरा प्रभाव हो रहा है और प्रकृति हमारे शरीर से विकारों को बाहर निकाल रही है।
उपवास समाप्त करने में विशेष सावधानी आवश्यक है, क्योंकि इसमें मनमानी करने से उपवास का सारा लाभ बेकार हो जाता है। यदि आपने केवल एक दिन का उपवास किया है, तो अगले दिन आप सामान्य जलपान और भोजन कर सकते हैं। यदि उपवास दो या तीन दिन का है, तो उसकी समाप्ति के बाद एक दिन केवल फलों का रस या सब्जियों का सूप दिन में तीन-चार बार लेना चाहिए।
उपवास लम्बे समय तक भी किये जा सकते हैं। परन्तु ऐसा किसी अनुभवी व्यक्ति की देखरेख में ही करना चाहिए, क्योंकि लम्बे उपवास में कई प्रकार के उपद्रव होते हैं और पुराने रोग उभर आते हैं। उनसे उपवासी घबड़ा सकता है और घबड़ाहट में गलत पग उठा सकता है। इसलिए मैं लम्बा उपवास करने की सलाह नहीं देता। इसके स्थान पर कई छोटे-छोटे उपवास बेखटके किये जा सकते हैं। उनसे भी उपवास का पूरा लाभ प्राप्त हो जाता है।
सामान्य स्वस्थ व्यक्ति को सप्ताह में एक दिन का पूर्ण उपवास अवश्य कर लेना चाहिए। इससे सप्ताह भर में खाने-पीने में हुई असावधानियों या गलतियों का परिमार्जन हो जाता है। सप्ताह में एक दिन का उपवास करना स्वास्थ्य का बीमा है। ऐसा व्यक्ति कभी बीमार पड़ ही नहीं सकता और सर्वदा स्वस्थ रहकर अपनी पूर्ण आयु भोगता है।
यदि केवल जल पीकर उपवास करना कठिन लगे, तो उसके स्थान पर रसाहार करना चाहिए। इसमें केवल मौसमी फलों का रस या सब्जियों का सूप दिन में तीन या चार बार लिया जाता है और शेष समय इच्छानुसार पानी पिया जाता है। इससे कमजोरी कम आती है और उपवास का लाभ भी काफी मात्रा में मिल जाता है।
जो लोग इतना भी न कर सकें उन्हें सप्ताह में एक दिन सायंकाल का भोजन त्याग देना चाहिए। इससे भी पाचन क्रिया को आवश्यक आराम मिल जाता है और पाचन शक्ति में सुधार होता है। जो लोग सप्ताह में एक समय भी बिना खाये नहीं रह सकते, उन्हें स्वास्थ्य की इच्छा छोड़ देनी चाहिए और मनमाना खा-पीकर कुपरिणाम भुगत लेना चाहिए।
-- डॉ विजय कुमार सिंघल
प्राकृतिक चिकित्सक एवं योगाचार्य
प्राकृतिक चिकित्सक एवं योगाचार्य
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