प्राकृतिक चिकित्सा-13 : जल कैसा, कहां एवं कब पीयें ?
हमने पिछली कड़ी में जल कितना एवं कैसे पीयें, पर विस्तृत चर्चा की थी। इस पूरक लेख में हम जल कब, कहां एवं कैसा उपयोग करें पर भी चर्चा करेंगे। विषय की गम्भीरता को ध्यान में रखते हुए कुछ स्पष्टीकरण देना उचित जान पड़ता है क्योंकि जल सभी स्थानों पर सुलभता से उपलब्ध होने के साथ, सस्ती एवं महत्वपूर्ण औषधि भी है। जब सारी औषधियाँ असफल हो जाती हैं, तब जल का एक घूँट या मात्र कुछ बूँदें ही जादू की तरह काम करके मनुष्य का जीवन आश्चर्यजनक ढंग से बचा देती हैं।
कैसा जल पीयें?
आयुर्वेद के प्रसिद्ध ग्रन्थ भाव प्रकाश निघन्टु में जल के विभिन्न नाम, गुण, भेद, वर्ष भर में भिन्न-भिन्न समयों में प्राप्त जल के गुण, विभिन्न स्वरूप, पीनेे का उपयुक्त समय, कब जल नहीं पीना चाहिए, कब कम जल पीना चाहिए, अशुद्ध जल को पीने लायक कैसे बनाया जाये, पिया हुआ जल कितने समय में पच जाता है इत्यादि का बहुत विशद, सम्यक व सटीक वर्णन किया गया है।
जल प्रदूषण का स्तर सर्वत्र बढ़ जाने के कारण आज मनुष्य के समक्ष यह प्रश्न उत्पन्न हो गया है कि कौन सा जल स्वास्थ के लिए उपयोग किया जाय। प्रदूषण के कारण प्रत्येक प्रकार का जल यथा बरसात, कुएं, हैंड पाइप, नदी, झील, तालाब एवं सरकारी नल की सप्लाई का जल भी स्वास्थ्य के लिए हानिप्रद हो रहा हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी इस विषय में चेतावनी जारी की है। समस्त बातों को ध्यान में रखते हुए हम इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि आर.ओ. का 100 से 200 के बीच टीडीएस का जल उपयोग में लाना चाहिए। उसके साथ ताजी सब्जियों का रस अवश्य लें, जिससे आर.ओ. से हो रही खनिजों की कमी की पूर्ति हो सके।
हमेशा कमरे के तापमान वाला जल पीना चाहिए। कभी-कभी गुनगुना जल पीना भी अच्छा है, लेकिन ठंडा, फ्रिज और बर्फ का जल पीना उचित नहीं, क्योंकि यह जठराग्नि को मंद कर देता है।
जल क्यों पीयें?
पिछले अंक मैं हम इस विषय पर व्रहत चर्चा कर चुके हैं। जल ऐसा पदार्थ है जो तीनों अवस्थाओं - ठोस, द्रव एवं गैस - में पाया जाता है। जल का पर्याप्त मात्रा में सेवन करने से मानसिक व शारीरिक थकान और तनाव से मुक्ति मिलती है। सुबह सोकर उठने पर जल के सेवन करने से रक्त चाप (विशेषकर उच्च) तथा कब्ज ठीक रहता है। स्पाइनल कोर्ड में डिस्क को मुलायम और स्पोन्जी बनाने के लिए जल का अधिक मात्रा में सेवन करना लाभप्रद होता है। जुकाम होने पर नासिका से जल को अन्दर ले जाएँ, फिर बाहर निकाल दे। ऐसा कई बार करने से जुकाम में लाभ पहुँचता है। बहुत अधिक बुखार होने पर ठण्डे पानी से स्नान कराने पर बुखार कम हो जाता है। जल त्वचा को मुलायम रखने में सहायक है।
आयुर्वेद में जल को पांच महाभूतों में महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। यदि एक ओर ठंडे पानी का सेवन, पित्त की अधिकता, जलन, उल्टी होना एवं थकावट के लिए अमृत समान है, तो वहीं यह जुकाम, दमा, खांसी, हिचकी एवं घी-तेल से बने पदार्थो के उपयोग के पश्चात विपरीत स्थितियां पैदा करता है। गुनगुना जल हल्का होने के कारण पाचन सम्बन्धी रोगों को दूर करता है।
रोजाना सुबह खाली पेट पानी पीना सेहत के लिए बहुत लाभकारी है। इससे शरीर की झुर्रियाँ, सफेद बाल, गला बैठना, बिगड़ा जुकाम, दमा, कब्ज तथा सूजन जैसे रोगों में आराम मिलता है, यही वह समय है तब एक बार में अधिक जल पीया जा सकता है।
जल कैसे पीयें?
जब आपको जल पीना हो तब जैसे आप भोजन के लिए बैठते हैं, उसी तरह जल पीने के लिए सबसे पहले बैठ जाना चाहिए। पूरे गिलास (लोटे को प्राथमिकता दें) के जल को एक बार में गट-गट करके न पीयें, अपितु छोटे-छोटे घूँट में सिप करते हुए पीजिए। एक घूँट पीने के बाद साँस लेने के लिए रुकिए।
दिन भर इसी तरह थोड़े थोड़े अंतराल पर जल पीते रहें। यदि आप एक साथ ढेर सारा जल गटक लेंगे, तो आपका शरीर उसे पूरी तरह हजम नहीं कर पाएगा।
जल कहाँ और कब पीयें?
प्यास लगने पर जल अवश्य पीजिए। प्यास एक प्राकृतिक संकेत है, जिसका सम्मान आपको करना चाहिए। इसका अर्थ होता है कि आपके शरीर को जल की आवश्यकता है। आपका मूत्र भी संकेत देता है कि आप पर्याप्त जल पी रहे हैं या नहीं। आपके मूत्र का रंग साफ और हल्का पीला होना चाहिए। यदि इसका रंग गहरा पीला है, तो आपको अधिक जल पीने की आवश्यकता है। आपके होंठ एक अन्य संकेतक हैं। यदि वे सूखे हैं तो आपके शरीर में जल की कमी हो सकती है।
पिछले दो दशकों में वातानुकूलन के व्यापक उपयोग के कारण पानी पीने की आदत में उल्लेखनीय बदलाव आया है। आजकल लोग 20-30 वर्ष पहले की अपेक्षा कम जल पीते या उपभोग करते हैं, जिससे रोगों में वृद्धि हुई है। इसलिए नित्य कुछ शारीरिक व्यायाम अवश्य करने चाहिए, जिससे प्यास अधिक लगेगी। यदि आप एयरकंडीशन्ड कमरे में अधिक समय गुजारते हैं, तो आपको पर्याप्त जल पीने के बारे में जागरूक रहना एवं अधिक जल उपयोग करना अनिवार्य है।
वैज्ञानिक अनुसंधानों के अनुसार एक व्यक्ति बिना भोजन के 1 हफ्ते तक जीवित रह सकता है, लेकिन पानी के बिना 5 दिन से ज्यादा जीवित नहीं रह सकता। इंसान के शरीर में जैसे ही 1 प्रतिशत भी पानी की कमी होती है तो उसे प्यास लगने लगती है। 5 प्रतिशत तक कमी आने पर शरीर की नसों और शक्ति में कमी आने लगती है। ऐसा होने पर शरीर बहुत थका और शिथिल लगने लगता है। अगर शरीर में पानी के स्तर में 10 प्रतिशत की कमी आती है, तो इंसान को धुंधला दिखने लगता है और वह बेहोशी की हालत में आ जाता है। अगर शरीर में पानी की कमी 20 प्रतिशत तक हो जाए तो यह व्यक्ति की मृत्यु का कारण भी बन सकता है। यही कारण है कि इंसान को हमेशा अपने शरीर में पानी की पूर्ति करते रहना चाहिए।
वैज्ञानिक अनुसंधानों के अनुसार एक व्यक्ति बिना भोजन के 1 हफ्ते तक जीवित रह सकता है, लेकिन पानी के बिना 5 दिन से ज्यादा जीवित नहीं रह सकता। इंसान के शरीर में जैसे ही 1 प्रतिशत भी पानी की कमी होती है तो उसे प्यास लगने लगती है। 5 प्रतिशत तक कमी आने पर शरीर की नसों और शक्ति में कमी आने लगती है। ऐसा होने पर शरीर बहुत थका और शिथिल लगने लगता है। अगर शरीर में पानी के स्तर में 10 प्रतिशत की कमी आती है, तो इंसान को धुंधला दिखने लगता है और वह बेहोशी की हालत में आ जाता है। अगर शरीर में पानी की कमी 20 प्रतिशत तक हो जाए तो यह व्यक्ति की मृत्यु का कारण भी बन सकता है। यही कारण है कि इंसान को हमेशा अपने शरीर में पानी की पूर्ति करते रहना चाहिए।
(इस कड़ी के मूल लेखक - श्री जगमोहन गौतम)
-- डॉ विजय कुमार सिंघल
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