प्राकृतिक चिकित्सा - १० : भोजन कितना करें और कैसे?
इस लेखमाला की पिछली कड़ी में हमने विस्तार से इसकी चर्चा की है कि हमें भोजन में केवल वे ही वस्तुएँ लेनी चाहिए जो स्वास्थ्य के लिए लाभदायक हों और रोगों से बचने में सहायक हों। यह प्रश्न फिर भी रह जाता है कि भोजन कितना किया जाये, क्योंकि यदि लाभदायक वस्तु भी आवश्यकता से अधिक मात्रा में खायी जाये, तो वह अन्तत: हानिकारक ही सिद्ध होती है।
इसलिए हम जो भी खायें वह अल्प मात्रा में ही खायें। परन्तु अधिकतर होता यह है कि स्वाद के वशीभूत होकर हम आवश्यकता से अधिक वस्तुएँ खा जाते हैं, जिन्हें हमारी पाचन प्रणाली अच्छी तरह पचा नहीं पाती। विवाह-शादियों और पार्टियों में प्रायः ऐसा देखा जाता है। एक तो वहाँ पचने में भारी वस्तुओं की भरमार होती है, दूसरे उन्हें भी लोग ठूँस-ठूँसकर खा लेते हैं। इससे पेट में विकार उत्पन्न होते हैं और हम चूरन-चटनी के सहारे उस भोजन को पचाने का प्रयास करते हैं।
कई विद्वानों ने सही कहा है कि हम जो खाते हैं, उसके एक तिहाई से हमारा पेट भरता है और दो तिहाई से डाक्टरों का। इसका तात्पर्य यही है कि हमारे जीवन के लिए अल्प मात्रा में भोजन ही पर्याप्त है और उससे अधिक खाने पर विकार ही उत्पन्न होते हैं। उनके इलाज में धन व्यय होता है, जिससे डाक्टरों को अच्छी आमदनी होती है। इसलिए यह बात गाँठ बाँध लीजिए कि कोई वस्तु चाहे कितनी भी स्वादिष्ट क्यों न हो और भले ही मुफ्त क्यों न मिली हो, उतनी ही मात्रा में खानी चाहिए, जितनी हम सरलता से पचा सकें। अधिक खाना ही बीमारियों का सबसे बड़ा कारण है। किसी ने सही कहा है कि खाने के अभाव से उतने लोग नहीं मरते, जितने ज्यादा खाने से मरते हैं।
भोजन के सम्बंध में एक अति महत्वपूर्ण बात यह है कि हम जो भी खा रहे हों उसे खूब चबा-चबाकर खाना चाहिए। अधिक चबाने से उसमें कई ऐसे रस मिल जाते हैं, जो पाचन में बहुत सहायक होते हैं। कुछ विद्वानों ने तो यहाँ तक कहा है कि प्रकृति ने हमारे मुँह में बत्तीस दाँत इसलिए दिये हैं कि हम प्रत्येक कौर को 32 बार चबाकर खायें। अच्छी तरह चबाये बिना भोजन को निगल जाने पर उसे पचाने का कार्य आँतों को करना पड़ता है, जिससे हमारी पाचन शक्ति धीरे-धीरे कमजोर हो जाती है और मलनिष्कासक अंग भी ठीक प्रकार से कार्य नहीं करते। इससे कब्ज पैदा होता है और उससे तमाम बीमारियाँ उत्पन्न होती हैं। इसलिए दाँतों का कार्य आँतों से लेना गलत है।
खूब चबाकर खाने से भोजन की मात्रा पर अपने आप नियंत्रण हो जाता है, क्योंकि अच्छी तरह चबाने से कम भोजन में ही पेट भर जाता है। अच्छी तरह चबाकर खायी गयी एक रोटी जल्दी-जल्दी खायी गयी चार रोटियों से अधिक पौष्टिक होती है। इसलिए हमें खूब चबाकर खाना चाहिए और भूख से थोड़ा कम ही खाना चाहिए।
अब प्रश्न उठता है कि भोजन कितनी बार करना चाहिए। कई लोग दिन में कई बार कुछ-न-कुछ खाते ही रहते हैं। यह भी बीमारियों को निमंत्रण देने के समान है। सामान्यतया हमें दिन में केवल दो बार भोजन करना चाहिए। सामान्य रूप से मैं नाश्ता करने के पक्ष में नहीं हूँ। मेरा विचार यह है कि दोपहर भोजन से पूर्व जहाँ तक सम्भव हो, कोई ठोस वस्तु नहीं लेनी चाहिए। यदि नाश्ता करना आवश्यक ही हो, तो हल्का और सुपाच्य तरल आहार लेना चाहिए, जैसे दूध, मठा, दलिया, अंकुरित अन्न, फल आदि। कहावत है कि ‘एक बार खाये योगी, दो बार खाये भोगी और तीन बार खाये रोगी’। इसका तात्पर्य भी यही है कि दो बार से अधिक भोजन करने वाला प्रायः रोगी बना रहता है।
इसलिए जहाँ तक सम्भव हो, हमें केवल दो बार ही पूर्ण आहार करना चाहिए। दो भोजनों के बीच में कम से कम 6 घंटों का अन्तर अवश्य होना चाहिए। कभी कभी हमें भोजन करने के तीन-चार घंटे बाद ही भूख लग आती है। वह कच्ची भूख होती है। उस समय कुछ भी खाना उचित नहीं है। सबसे अच्छा यह रहेगा कि एक गिलास जल या किसी फल का जूस पी लिया जाये। इस सम्बंध में सबसे सुनहरा नियम यह है कि जब तक कड़ी भूख न लगे, तब तक कुछ भी मत खाइये। बिना भूख के खाना या कम भूख में खाना मुसीबत बुलाने के समान है।
रात्रि का भोजन सोने से कम से कम दो-तीन घंटे पूर्व अवश्य कर लेना चाहिए। लोग इस नियम को सबसे अधिक तोड़ते हैं और फिर उसका दुष्परिणाम भोगते हैं। प्रायः यह देखा जाता है कि लोग रात्रि में 10-11 बजे भोजन करते हैं और फिर उसके तुरन्त बाद सो जाते हैं। इससे भोजन को पचने के लिए पर्याप्त समय नहीं मिलता और वह रातभर बिना पचे पेट में पड़ा रहता है। इससे बहुत प्रकार की बीमारियाँ पैदा होती हैं और लोगों के पेट भी लटक जाते हैं। नव विवाहित युगलों में यह प्रवृत्ति सबसे अधिक पायी जाती है, इसलिए उनके पेट बहुत जल्दी ही लटकने लगते हैं। लटके हुए पेट स्वास्थ्य और सौन्दर्य के शत्रु होते हैं। ऐसे लोगों की आयु भी अल्प होती है और वे प्रायः तरह-तरह की बीमारियों से पीड़ित रहते हैं।
इसलिए यदि आप पेट को बाहर निकलने से बचाना चाहते हैं, तो रात्रि का भोजन 7-8 बजे तक अवश्य कर लें और यदि कभी देर हो जाये, तो कम मात्रा में भोजन करें या बिल्कुल न करें। रात्रि को देर से भोजन करने वालों को नाश्ता भूलकर भी नहीं करना चाहिए और दूसरे दिन दोपहर 12 बजे से पूर्व जल के अतिरिक्त कुछ भी नहीं खाना-पीना चाहिए। इससे वे बहुत से दुष्प्रभावों से बचे रह सकते हैं। जिनका पेट पहले से लटका हुआ है, वे भी इन नियमों का पालन करके अर्थात् नाश्ता छोड़कर और थोड़ा सा शारीरिक व्यायाम करके उससे कुछ महीनों में ही छुटकारा पा सकते हैं।
— डॉ विजय कुमार सिंघल
प्राकृतिक चिकित्सक एवं योगाचार्य
प्राकृतिक चिकित्सक एवं योगाचार्य
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