प्राकृतिक चिकित्सा - २ : स्वास्थ्य और जीवनीशक्ति
मनुष्य के लिए स्वस्थ रहना कोई कठिन कार्य नहीं है। वास्तव में स्वस्थ रहना पूरी तरह स्वाभाविक है और अस्वस्थ रहना एकदम अस्वाभाविक है। कई लोगों को भ्रम रहता है कि सभी लोग बीमार पड़ते रहते हैं, हम भी पड़ गये तो कोई बड़ी बात नहीं है। इसलिए वे बीमार रहने और उसका इलाज चलते रहने को साधारण बात मानते हैं। वे अपनी आमदनी का एक बड़ा भाग डाक्टरों और दवाओं पर खर्च करना भी अनिवार्य मानते हैं। ऐसे लोग जानते ही नहीं कि स्वास्थ्य क्या होता है और लगातार दवाएँ खाते रहने पर भी (और वास्तव में उन्हीं के कारण ही) वे हमेशा बीमार बने रहते हैं तथा अन्त में उसी स्थिति में समय से पहले ही परलोक सिधार जाते हैं। वस्तुतः दवाइयाँ बीमारियों को दूर नहीं करतीं, बल्कि अधिकांश बीमारियों का कारण होती हैं।
वास्तव में स्वस्थ रहना बहुत ही आसान है और बीमार पड़ जाने पर स्वस्थ होना भी कठिन नहीं है। यदि हम खान-पान और रहन-सहन के साधारण नियमों का पालन करें, तो हमेशा स्वस्थ और क्रियाशील रहते हुए अपनी पूर्ण आयु भोग सकते हैं। एक बार महान् आयुर्वेदिक चिकित्सक चरक ने अपने शिष्यों से पूछा था- ‘कोऽरुक्? कोऽरुक्? कोऽरुक्?’ अर्थात् ”स्वस्थ कौन है? स्वस्थ कौन है? स्वस्थ कौन है?“ एक बुद्धिमान शिष्य ने इसका उत्तर इस प्रकार दिया था- ‘हित भुक्, ऋत् भुक्, मित भुक्’ अर्थात् ”हितकारी भोजन करने वाला, ऋतु अनुकूल और सात्विक उपायों से प्राप्त भोजन करने वाला तथा अल्प मात्रा में भोजन करने वाला ही स्वस्थ है।“
इस कहानी में स्वास्थ्य का पूरा रहस्य छिपा हुआ है। सन्तुलित मात्रा में सात्विक खान-पान करने वाला न केवल सदा स्वस्थ रहता है, बल्कि उसमें परिस्थितियों के अनुकूल ढलने और रोगों से लड़ने की शक्ति भी पर्याप्त मात्रा में होती है। इसी शक्ति को विद्वानों ने जीवनीशक्ति कहा है। जिस व्यक्ति में जितनी अधिक जीवनीशक्ति होती है, वह व्यक्ति उतना ही अधिक स्वस्थ और क्रियाशील रहता है और उसकी आयु भी अधिक होती है।
आजकल लोगों में जीवनीशक्ति का बहुत अभाव पाया जाता है। जरा सा मौसम बदलने पर ही वे बीमार पड़ जाते हैं और इसे स्वाभाविक बात मानकर मौसम को ही अपनी बीमारी का कारण बताकर दोष देते हैं। परन्तु मौसम तो सभी के लिए बदलता है। यदि यही बीमारियों का कारण होता, तो सभी लोग बीमार पड़ जाते। कई लोग पहले से ही डरे रहते हैं कि अब मौसम बदलने वाला है, तो बीमार पड़ना ही है। वास्तव में मौसम का बदलना नहीं, बल्कि जीवनीशक्ति की कमजोरी ही उनके बीमार पड़ने का प्रमुख कारण होती है।
जीवनीशक्ति कमजोर होने के कई कारण होते हैं। उनमें सबसे पहला है- अनुचित खान-पान और दूसरा है- मौसम के विपरीत चलना। हम स्वाद या चलन के वशीभूत होकर मनमानी चीजें खाते-पीते रहते हैं, जिनको हमारा शरीर स्वीकार नहीं कर पाता। उनको पचाने और उनका अधिकांश अनावश्यक भाग शरीर से बाहर निकालने में हमारी बहुत सी जीवनीशक्ति खर्च हो जाती है। इसी प्रकार हम जाड़ों में हीटर के सामने बैठे रहते हैं या गर्म कपड़ों से लदे रहते हैं, गर्मियों में कूलर और एयरकंडीशनर वाले कमरों में बैठे रहते हैं तथा बरसात में घर में घुसे रहते हैं। इससे हमारा शरीर मौसम के थोड़े से परिवर्तन को भी झेलने में असमर्थ हो जाता है।
स्वस्थ रहने और अपनी जीवनीशक्ति बनाए रखने के लिए यह आवश्यक है कि हम मौसम के साथ-साथ चलें अर्थात् जहाँ तक हो सके जाड़ों में जाड़ा सहन करें, गर्मियों में गर्मी सहन करें और बरसात में भीगें। मौसम अपनी सहनशक्ति से बाहर होने पर ही हमें कृत्रिम उपायों का सहारा लेना चाहिए।
— डॉ विजय कुमार सिंघल
प्राकृतिक चिकित्सक एवं योगाचार्य
मो. 9919997596
प्राकृतिक चिकित्सक एवं योगाचार्य
मो. 9919997596
14 सितम्बर 2019
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